गुरुवार, 23 मार्च 2017

आजादी के महानायक –सरदार भगत सिंह


23 मार्च शहीद दिवस पर विशेष
आजादी के महान नायक –सरदार भगत सिंह
लाल बिहारी लाल
भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में  28 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।भदत सिंह बाल्य काल से ही अपने चाचा के पुस्तकालय से क्रातिकारी किताबे पढते थे पर इसके समर्थक नहीं थे। लेकिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की घटना सुनकर भगत सिंह ने अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गये। इस घटना से  भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी में अपना योगदान देने  के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की । काकोरी काण्ड में राम प्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी एंव 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह काफी आहत हुए।1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिये भयानक प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों मे भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। इसी लाठी चार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी। अब इनसे रहा न गया और एक गुप्त योजना के तहत इन्होंने पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट स्काट को मारने की योजना सोची। इस सोची गयी योजनानुसार भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे। उधर जयगोपाल अपनी साइकिल को लेकर ऐसे बैठ गये जैसे कि वो ख़राब हो गयी हो। गोपाल के इशारे पर दोनों सचेत हो गये। उधर चन्द्रशेखर आज़ाद पास के डी०ए०वी० स्कूल की चहारदीवारी के पास छिपकर घटना को अंजाम देने में रक्षक का काम कर रहे थे। 17 दिसंबर 1928 को करीब सवा चार बजे, ए० एस० पी० सॉण्डर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधी उसके सर में मारी जिसके तुरन्त बाद वह होश खो बैठे। इसके बाद भगत सिंह ने 3-4 गोली दाग कर उसके मरने का पूरा इन्तज़ाम कर दिया। ये दोनों जैसे ही भाग रहे थे कि एक सिपाही चनन सिंह ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने उसे सावधान किया - "आगे बढ़े तो गोली मार दूँगा।" नहीं मानने पर आज़ाद ने उसे गोली मार दी। इस तरह इन लोगों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला अंग्रैजों से ले लिया।
   भगत सिंह यद्यपि रक्तपात के पक्षधर नहीं थे परन्तु वे वामपंथी (कम्युनिष्ठ ) विचारधारा पर चलते थे, तथा कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से पूरी तरह प्रभावित थे। यही नहीं, वे समाजवाद के पक्के पोषक भी थे। इसी कारण से उन्हें पूँजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसन्द नहीं आती थी। उस समय चूँकि अँग्रेज ही सर्वेसर्वा थे तथा बहुत कम भारतीय उद्योगपति उन्नति कर पाये थे, अतः अँग्रेजों के मजदूरों के प्रति अत्याचार से उनका विरोध स्वाभाविक था। मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का निर्णय था। सभी चाहते थे कि अँग्रेजों को पता चलना चाहिये कि हिन्दुस्तानी अब जाग चुके हैं और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है। ऐसा करने के लिये ही उन्होंने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने की योजना बनायी और 8 अप्रैल 1929 को क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।  उस समय वे दोनों खाकी कमीज़ तथा निकर पहने हुए थे। बम फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये। इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया गया।
    26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फरवरी, 1931 को अपील दायर की कि वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फांसी की सजा माफ कर दें। भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करवाने हेतु महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की फिर 18 फरवरी, 1931 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने विभिन्न तर्को के साथ सजा माफी के लिए अपील दायर की। यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था क्योंकि भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए।
23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"
फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।

फाँसी के बाद कहीं कोई जनआक्रोश न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया। और भगत सिंह हमेशा के लिये अमर हो गये। आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी। ऐसे वीर सपुत के मेरा आज शत-शत नमन।
सचिव-लाल कला मंच,नई दिल्ली
फोन- 09868163073




शुक्रवार, 10 मार्च 2017

गीत- होली का रंग....लाल बिहारी लाल

गीत- होली का रंग....

      लाल बिहारी लाल


होली का रंग बदरंग हो गया है
जमानें में सब कुछ तंग हो गया है

मलता है रंग कोई डालता गुलाल है
चारो ओर देखों हो रहा अब धमाल है
पहले का मौसम अब भंग हो गया है
होली का रंग.........

कही दौड़ विस्की का कहीं पर रम है
वर्षों का बैर याद आता हर दम है
मिलते हैं हाथ दिल तंग हो गया है
होली का रंग.........

नहीं भाईचारा रहा बचा नहीं प्यार है
चारो ओर देखो हो रहा तकरार है
जीवन का रंग बे-ढंग हो गया है
होली का रंग.........


होली को जानो मानो रहने दो होली
नफरत को छोड़ बोलो प्यार की बोली
लाल बिहारी का लाल अब रंग हो गया है
होली का रंग.........

   सचिव- लाल कला मंच,नई दिल्ली




गुरुवार, 9 मार्च 2017

युवा क्रांति फाउण्डेशन ने अन्त. महिला दिवस पर विचार गोष्ठी एवं रैली का आयेजन किया।

युवा क्रांति फाउण्डेशन ने अन्त. महिला दिवस पर विचार गोष्ठी एवं रैली का आयेजन किया।
सोनू गुप्ता
बदरपुर। युवा क्रंति फाउण्डेशन ने अपने मुख्यालय पर अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को जागरुक करने के लिए एक गोष्ठी एवं जागरुकता रैली का आयोजन समाजसेवी एंव पत्रकार दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल के आतिथ्य में समपन्न हुआ।इस कार्यक्रम में मोहतरमा सहनवाज,कुमारी वर्षा,निर्मल झा उर्फ गुड्डू,मो.यकूब तथा संस्था के अध्यक्ष मो. रफी तथा विसाखा मैडम ने अपने-अपने विचार रखे। मुख्य अतिथि के रुप में आये लाल बिहारी लाल ने कहा कि सबसे पहले सोशलिस्ट पार्टी ने महिलाओं के  मताधिकार का हक मिलें इसकी लड़ाई 1909 में इसी दिन शुरु की  थी ।उसके बाद ही ग्रेगेरियन कैलेंडर के हिसाब से इस दिन को 8 मार्च था तभी से यह  चलन में आया। इस दिन महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक एवं राजनैतिक स्तर में सुधार लाने के लिए प्रयास के रुप में  मनाया जाता है। भारत सरकार आजादी के पहले और आजादी के बाद महिलाओं की दशा एवं दिशा सुधारने के लिए काफी प्रयास किया है और अभी भी कर रही है।राजाराम मोहन राय को प्रयास से 1856 में सती प्रथा का उनमूलन हो,बिधवा पुर्विवाह हो या दहेज प्रथा का उन्मुलन हो ,समान वेतन की बात हो या समाजिक स्तर में सुधार हो ,कार्यालयों में शोषण की बात हो या फिर भ्रुण हत्या जैसी जघन्य अपराध हो । समान शिक्षा एवं रोजगार के अवसर हो सभी में गुणात्मक सुधार हुआ है। सन 2001 के जनगणना में प्रति 1000 पुरुषों पर 933 महिलाये थी  के मुकाबले 2011 की जनगणना में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। और यह बढ़कर 943 हो चुकी है। इस आवसर पर सैकड़ो महिलाओ को अपने बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प कराया गया ताकि एक शिक्षित महिला पूरे समाज को शिक्षित कर सकती है।बिहार सहित कई राज्य सरकारे विभिन्न निकाय चुनावों में महिलाओं के  लिए 50% आरक्षण भी कर दिया है यह संसद में भी मिहिला आरक्षण विल पेश हुआ पर अभी तक पास नही हुआ है। समाज औऱ देश की दशा और दिशा सुधारने के लिए महिलाओं की स्थिति में सुधार जरुरी है।
  महिलाओं की दशा एवं दिशा को सुधारने के लिए खड़ा कालोनी की गलियों में लगभग 3 कि.मी. की एक रैली भी निकाली गई जिसका नेतृत्व समाजसेवी विशाखा मैडम , सुनिता मैमड .मो. रफी एवं लाल बिहारी लाल ने किया। इस रैली में महिलाओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इस अवसर पर संस्था के उपाध्यक्ष में.सरीफ सैफी, सदस्य फरहद खान, समाजसेवी,निशा खान,शखीना, अविनिश पांडे, असलम जावेद सहित कई लोग मौयूद थे। अंत में संस्था के अध्यक्ष मो. रफी ने सभी का हार्दिक धन्यवाद दिया।




मंगलवार, 7 मार्च 2017

नारी के मान सम्मान का सही से रखे ख्याल- लाल बिहारी लाल

नारी के मान सम्मान का सही से रखे ख्याल- लाल बिहारी लाल
 नई दिल्ली। हमारी भारतीय संस्कृति ने सदैव ही नारी जाति का स्थान पूज्यनीय एवं वन्दनीय रहा हैनारी का रूप चाहे मां के रूप में होबहन के रुप में होबेटी के रुप में हो या फिर पत्नी के रूप में हो सभी रुपों में  नारी का सम्मान किया जाता है।  यह बात आदिकाल से ही हमारे पौराणिक गाथाओ में विद्यमान रही है।और आज भी जगह –जगह देवी के रुप में पूजी जाती हैं। नौ रात्रों में क्न्या खिलाने की प्रथा आज भी विद्यमान है। हमें यह भी ज्ञात है कि नारी प्रेमस्नेहकरूणा एवं मातृत्व की प्रतिमूर्ति है। इसलिए जरुरी है की नारी का ख्याल रखना जरुरी है। यह कहना है लाल कला मंच के संस्थापक सचिव,समाजसेवी,पत्रकार एवं दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल का।
नारी की दीनहीन दशा देखकर कई समाज सुधारको ने प्रयत्न किया और आज सरकारी स्तर पर इन्हे समान दर्जा प्राप्त है। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास से सती प्रथा का अंत हुआ।फिर नारी की दशा सुधारने के लिए आचार्य विनोवा भावे ,स्वामी विवेकानंद ने भी काम किया। ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयास से विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 आया। नारी की स्थिति सुधारने के लिए- अनैतिक ब्यपार रोकथाम अधिनियम-1956,दहेज रोक अधिनियम-1961,पारिश्रमिक एक्ट 1976,मेडिकल टर्म्मेशन आँफ प्रिगनेंसी एक्ट 1987,लिंग परीक्षण तकनीक( नियंत्रक और गलत इस्तेमाल)एक्ट 1994, बाल विबाह रोकथाम एक्ट 2006,कार्य स्थलो पर महिलाओं का शोषण एक्ट 2013  आदी महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक स्तर सुधारने के लिए काफी प्रयास किये गये है। इसी का परिणाम है कि 2001 की जनगणना में जहा महिलाओं की संख्या प्रति 1000 पुरुषों  पर 933 थी जो 2011 की जनगणना में 943 हो गई।
   विश्व की आधी आबादी महिलाओं की हैलेकिन भारतीय समाज में महिला को वह स्थान आज तक प्राप्त नहीं हो सका है जिसकी वह हकदार है। भारतीय समाज सदैव से ही पुरुष प्रधान माना गया हैलेकिन 21 वीं सदी में अब स्थिति बदलने लगी है। स्क्षियों को पुरुष के समान दर्जा दिया जाने लगा है।आज भारतीय महिलाये प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर अफना योगदान दे रही है।चाहे बात शिक्षा की होबैंकिंग क्षेत्र की होस्वास्थ्य की हो,रक्षा की हो,  मनोरंजन की हो,रेल चलाने की हो या हवाई जहाज उड़ाने की आई.टीक्षेत्र हो अथवा राजनैतिक क्षेत्र हो हर क्षेत्र में सक्रिय हैं।कई राज्यो ने तो स्थानीय निकाय चुनावों में 50 %  का आरक्षण  भी दे रखी है।  इसके विपरीत हमारे देश में महिलाओं पर अत्याचार की बढ़ती घटनाओं ने भारतीय नारी की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। देश की राजधानी दिल्ली सहित कई प्रदेशों में नारी के साथ अत्याचार अभी भी जारी है।
   पितृसतात्मक सत्ता में नारी को सम्बल बनाने की जरुरत है  ताकि  इनकी सामाजिक,आर्थिक औऱ राजनैतिक  स्तर सशक्त हो सके। आज समस्त समाज एकजुट होकर ,   नारी सम्मान एवं उसकी सुरक्षा के सम्मान का संकल्प लेना चाहिय़े।  हम जानते हैं कि नारी के बिना सृष्टि सृजन की कल्पना अधूरी है। वंश चलाने की वात करने वालों लड़के को भी नारी ही जन्म देती है। इसके सहयोग के विना लड़का हो या लड़की कोई भी पैदा नही हो सकता है। जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख के सहारे उड़ नहीं सकताउसी प्रकार नारी के बिना पुरुष की कल्पना भी नहीं की जा सकती।  यदि हम नारी को भयमुक्त वातावरण देने   और आत्मसम्मान के साथ खड़ा करने में सहयोगी बन सकेतो यह हमारे औऱ समाज के लिए गर्व की बात होगी।