सोमवार, 1 दिसंबर 2014

एड्स का जागरुकता ही बचाव है-लाल बिहारी लाल

विश्व एड्स दिवस ( 1 दिसंम्बर) पर विशेष

एड्स का जागरुकता ही बचाव है-लाल बिहारी लाल


 लगातार थकान,रात को पसीना आना,लगातार डायरिया,जीभ/मूँह पर सफेद धब्बे,,सुखी खांसी,लगातार बुखार रहना आदी पर एड्स की संभावना हो सकती  हैं।

लाल बिहारी लाल

लगभग 200-300 साल पहले इस दुनिया में मानवों में एड्स का नामोनिशान तक नही था। यह सिर्फ अफ्रीकी महादेश में पाए जाने वाले एक विशेष प्रजाति  के बंदर में पाया जाता था । इसे कुदरत के अनमोल करिश्मा ही कहे कि उनके जीवन पर इसका कोई प्रभाव नही पडता था। वे सामान्य जीवन जी रहे थे।
      ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले एक अफ्रीकी युवती इस वंदर से अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित की और वह एड्स का शिकार हो गई क्योकि अफ्रीका में सेक्स कुछ खुला है , फिर उसने अन्य कईयों से यौन संबंध वनायी और कईयों ने कईयों से इस तरह तरह एक चैन चला और अफ्रीका महादेश से शुरु हुआ यह एड्स की विमारी आज पुरी दुनिया को अपने आगोश में ले चुकी है। आज पूरी दुनिया में 40 मिलियन के आसपास एच.आई.बी.पाँजिटीव है इनमें  से 25 मिलियन तो डिटेक्ट हो चुके हैं जिसमें सिर्फ अमेरिका में ही 1 मिलियन इस रोग से प्रभावित हैं।
     भारत में कुछ मशहूर रेड लाइट एरियामुम्बई,सोना गाछी (कोलकाता), वनारस, चतुर्भुज  स्थान
(मुज्जफरपुर), मेरठ एवं सहारनपुर आदि है। उनमें कुछ साल पहले तक तो सबसे ज्यादा सेक्स वर्कर मुम्बई में इस एड्स प्रभावित थे पर आज एड्स से सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्स कर्मी लुधियाना(पंजाब) में हैऔर राज्यो की वात करे तो सर्वाधिक महाराष्ट्र में है. इसके बाद दुसरे स्थान पर आंध्र प्रदेश है।
    इस विमारी के फैलने का मुख्य कारण (80-85 प्रतिशत) असुरक्षित यौन संबंध - ब्यभिचारियों, बेश्याओं,वेश्यागामियों एंव होमोसेक्सुअल है।इसके अलावे संक्रमित सुई के इस्तेमाल किसी अन्य के साथ करने,संक्रमित रक्त चढाने आदी के द्वारा ही फैलता हैं। इस विमारी के चपेट में आने पर एम्यूनी डिफेसियेंसी(रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम हो जाती है।जिससे मानव काल के ग्रास में बहुत तेजी से बढता  है। और अपने साथी को भी इस चपेट मे ले लेता है। अतः जरुरी है कि अपने साथी से यौन संबंध वनाने के समय सुरक्षक्षित होने के लिए कंडोम का प्रयोग अवश्य करें। सन 1981 में इसके खोज के बाद अभी तक 30 करोड से ज्यादा लोग काल के गाल में पूरी दुनिया में समा चुके हैं।

   इसके लक्षणों में मुख्य रुप से लगातार थकान,रात को पसीना आना,लगातार डायरिया,जीभ/मूँह पर सफेद धब्बे,,सुखी खांसी,लगातार बुखार रहना आदी प्रमुख हैं।
 इस विमारी को फैलने  में भारत के ग्रामिण  इलाके में गरावी रेखा से नीचे ,अशिक्षा,रुढीवादिता ,महँगाई और बढती खाद्यानों के दामों के कारण पापी पेट के लिए इस कृत(पाप) को करने पर उतारु होना पडता है। इससे बचने के लिए सुरक्षा कवच का उपयोग एवं साथी के साथ ही यौन संबंध वनायें रखना ही सर्वोत्म उपाय है ।     दुनिया में 186 देशो से मिले आकडो पर आधारित एचआईवी/एड्स ग्लोबल रिर्पोट-2012 के मुताबिक  भारत में 2001 से 2011 के मुकावले नए मरीजो की संख्या में 25 प्रतिशत की कमी आई है। 40-55 प्रतिशत मरीजो को एंटी रेटेरोवायरल दवायें उपलब्ध है। लेकिन अभी भी विश्व में इसका खतरा टला नहीं है। बर्ष 2011 में 20.5 करोड लोग इसके चपेट मे आयें हैं। जबकि 50 प्रतिशत की कमी आई है।रिर्पोट के अनुसार 2005 से 2011 के बीच पूरी दुनिया में 24 प्रतिशत कम मौत दर्ज की गई है। यह अच्छी वात है पर अभी भी इसके लिए जागरुकता की सख्त जरुरत है।
 लाल बिहारी लाल
सचिव
लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच,नई दिल्ली
फोन-9868163073
lalkalamunch@rediffmail.com



शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

जवाहर लाल नेहरू के  125 वीं जन्म  दिवस पर विशेष
(14 नवंबर,बाल दिवस के शुभ अवसर पर)

बच्चों के चाचा-जवाहर लाल नेहरू
लाल बिहारी लाल
नई दिल्ली। बच्चे हर देश का  भविष्य और उसकी तस्वीर होते हैं. बच्चे ही किसी देश के आने वाले भविष्य को तैयार करते हैं. लेकिन भारत जैसे देश में बाल मजदूरी, बाल विवाह और बाल शोषण के तमाम ऐसे अनैतिक और क्रूर कृत्य मिलेंगे जिन्हें देख आपको यकीन नहीं होगा कि यह वही देश है जहां भगवान विष्णु को बाल रूप में पूजा जाता है और जहां के प्रथम प्रधानमंत्री को बच्चे इतने प्यारे थे कि उन्होंने अपना जन्म दिवस ही उनके नाम कर दिया.

देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से विशेष प्रेम था। यह प्रेम ही था जो उन्होंने अपने जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से लगाव था तो वहीं बच्चे भी उन्हें चाचा नेहरू के नाम से जानते थे। जवाहरलाल नेहरू ने नेताओं की छवि से अलग हटकर एक ऐसी तस्वीर पैदा की जिस पर चलना आज के नेताओं के बस की बात नहीं। आज चाचा नेहरू का जन्मदिन है, तो चलिए जानते हैं जवाहरलाल नेहरू के उस पक्ष के बारे में जो उन्हें बच्चों के बीच चाचा बनाती थी।



14 नवंबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मे पं. नेहरू (P. Nehru) का बचपन काफी शानोशौकत से बीता. उनके पिता देश के उच्च वकीलों में से एक थे. पं. मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) एक धनाढ्य वकील थे. उनकी मां का नाम स्वरूप रानी नेहरू था. वह मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे. इनके अलावा मोती लाल नेहरू (Motilal Nehru) की तीन पुत्रियां थीं. उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं.

वह महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े. चाहे असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की बात हो उन्होंने गांधी जी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया. नेहरू की विश्व के बारे में जानकारी से गांधी जी काफी प्रभावित थे और इसीलिए आजादी के बाद वह उन्हें प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे. सन् 1920 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया. 1923 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव चुने गए.

1929 में नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए. नेहरू आजादी के आंदोलन के दौरान बहुत बार जेल गए. 1920 से 1922 तक चले असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें दो बार गिरफ्तार किया गया.

नेहरू जहां गांधीवादी मार्ग से आजादी के आंदोलन के लिए लड़े वहीं उन्होंने कई बार सशस्त्र संघर्ष चलाने वाले क्रांतिकारियों का भी साथ दिया। आजाद हिन्द फौज के सेनानियों पर अंग्रेजों द्वारा चलाए गए मुकदमे में नेहरू ने क्रांतिकारियों की वकालत की। उनके प्रयासों के चलते अंग्रेजों को बहुत से क्रांतिकारियों का रिहा करना पड़ा। 27 मई, 1964 को उनका निधन हो गया.


बच्चों के चाचा नेहरू
एक दिन तीन मूर्ति भवन के बगीचे में लगे पेड़-पौधों के बीच से गुजरते हुए घुमावदार रास्ते पर नेहरू जी टहल रहे थे।उनका ध्यान पौधों पर था, तभी पौधों के बीच से उन्हें एक बच्चे के रोने की आवाज आई. नेहरूजी ने आसपास देखा तो उन्हें पेड़ों के बीच एक-दो माह का बच्चा दिखाई दिया जो रो रहा था।

नेहरूजी ने उसकी मां को इधर-उधर ढूंढ़ा पर वह नहीं मिली. चाचा ने सोचा शायद वह बगीचे में ही कहीं  माली के साथ काम कर रही होगी. नेहरूजी यह सोच ही रहे थे कि बच्चे ने रोना तेज कर दिया। इस पर उन्होंने उस बच्चे की मां की भूमिका निभाने का मन बना लिया।

वह बच्चे को गोद में उठाकर खिलाने लगे और वह तब तक उसके साथ रहे जब तक उसकी मां वहां नहीं आ गई। उस बच्चे को देश के प्रधानमंत्री के हाथ में देखकर उसकी मां को यकीन ही नहीं हुआ।

दूसरा वाकया जुड़ा है तमिलनाडु से. एक बार जब पंडित नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर गए तब जिस सड़क से वे गुजर रहे थे वहां लोग साइकलों पर खड़े होकर तो कहीं दीवारों पर चढ़कर नेताजी को निहार रहे थे। प्रधानमंत्री की एक झलक पाने के लिए हर आदमी इतना उत्सुक था कि जिसे जहां समझ आया वहां खड़े होकर नेहरू जी को निहारने लगा.

इस भीड़ भरे इलाके में नेहरूजी ने देखा कि दूर खड़ा एक गुब्बारे वाला पंजों के बल खड़ा डगमगा रहा था. ऐसा लग रहा था कि उसके हाथों के तरह-तरह के रंग-बिरंगी गुब्बारे मानो पंडितजी को देखने के लिए डोल रहे हों. जैसे वे कह रहे हों हम तुम्हारा तमिलनाडु में स्वागत करते हैं. नेहरूजी की गाड़ी जब गुब्बारे वाले तक पहुंची तो गाड़ी से उतरकर वे गुब्बारे खरीदने के लिए आगे बढ़े तो गुब्बारे वाला हक्का-बक्का-सा रह गया.

नेहरू जी ने अपने तमिल जानने वाले सचिव से कहकर सारे गुब्बारे खरीदवाए और वहां उपस्थित सारे बच्चों को वे गुब्बारे बंटवा दिए. ऐसे प्यारे चाचा नेहरू को बच्चों के प्रति बहुत लगाव था. नेहरू जी के मन में बच्चों के प्रति विशेष प्रेम और सहानुभूति देखकर लोग उन्हें चाचा नेहरू के नाम से संबोधित करने लगे और जैसे-जैसे गुब्बारे बच्चों के हाथों तक पहुंचे बच्चों ने चाचा नेहरू-चाचा नेहरू की तेज आवाज से वहां का वातावरण उल्लासित कर दिया. तभी से वे चाचा नेहरू के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

लेखक-वरिष्ठ साहित्यकार एवं लाल कला मंच,नई दिल्ली के सचिव हैं।





सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

शक्ल दरिया की बदल दी जायेगी जिन्दगी खुशियों के नगमे गाएगी ......


         शक्ल दरिया की बदल दी जायेगी जिन्दगी खुशियों के नगमे गाएगी ......


          युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच की तीसरी मासिक "काव्य गोष्ठी "कल मंच के संरक्षक सर राम किशोर उपाध्याय जी के निवास स्थान पर की हुई !जिसकी अध्यक्षता  वरिष्ठ गज़लकार श्री रमेश सिद्धार्थ जी ने की ,और काव्य गोष्ठी का मंच का सञ्चालन निर्देश शर्मा जी ने बखूबी किया !
आमंत्रित कवियों में गजलकार श्री रमेश सिद्धार्थ जी ,श्री राम किशोर उपाध्याय जी गज़लकार श्री रामश्याम "हसीन",ओम प्रकाश शुक्ल ,प्रदीप शर्मा ,एन के मनु जी और संजय कुमार गिरि  जी रहे ,कवियों ने अपनी बहुत सुन्दर रचनाये सुनाई और सभी का दिल जीतने में सफल रहे ,
उनकी कुछ पंक्तियाँ देखिये .......



श्री रमेश सिद्धार्थ जी का ग़ज़ल कहने का सुन्दर अंदाज़ भी बहुत सुन्दर रहा ......... 
निभाना फर्ज हो तो बस जमीर काफी है,
डगर दिखाने को तो इक फकीर काफी है!
कसम, ईमान, धरम और नियम हैं बेमानी,
हया और शर्म की नाजुक लकीर काफी है !!

श्री रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपनी सुन्दर रचनाओं से सभी का दिल जीत लिया ........
कहने दो मुझको अभी कई अंदाज बाकी है,
उड़ने दो मुझको अभी कई परवाज बाकी है,
आज इस जमाने में रस्मे-उलफ़त के दीगर,
निभाने को मुझे अभी कई रिवाज बाकी है |

राम श्याम हसीन जी की सुन्दर गज़ल ने सभी का मनमोह लिया .......
शक्ल दरिया की बदल दी जायेगी 
जिंदगी खुशियों के नगमे गाएगी  "                                                                       

ओम प्रकाश शुक्ल जी का एक अंदाज़ ..............           
राज दिल का बता नहीँ पाया ।
हाल अपना सुना नहीँ पाया ।।
पास मेरे रहे सदा फिर भी ,
चाह उनसे जता नहीँ पाया ।।
 
एन के मनु जी का यह प्रथम काव्यपाठ भी बहुत सुन्दर रहा .......
गुण अवगुण तो हर एक में है
हम तुम इसके अपवाद नही।
यदि नारी कोई कलुषित है

तो नर भी कोई निरपराध नही
संजय कुमार गिरि ने भी बहुत खूब कहा .......
कर इबादत अब खुदा की देख ले !
तेरी हर दुआ  कबूल हो जायेगी !!
लिख ले "संजय" इतना ये आज तू !
एक दिन तेरी रूह खुदा से मिल जायेगी !!

प्रदीप शर्मा जी का निराला अंदाज ........
ठिकाने आसमां में ....बनाये हैं किसने
परिंदों ने बताया न हो...ये हो नहीं सकता
मोहब्बत उसूल है पहला...हर गज़ले शायरी का
फ़क़ीरों ने समझाया न हो..ये हो नहीं सकता

निर्देश शर्मा पाबलेवाला का शानदार मंच संचालन और बेहतरीन काव्यपाठ ......

सुना है चॉद भी, हडताल पर है!
गगन मे चर्चा ,इसी सवाल पर है!
मेरे महबूब का जो रूप देखा, जल गया है!
दंग , वो-उनके हुस्नो ,हाल पर है!

     काव्य गोष्ठी के दौरान आदरणीय श्री रमेश सिद्धार्थ जी ने अपनी गजलों की सी .डी."कहकशां रमेश सिद्धार्थ की दिलकश गजलेँ" भी कवियों को वितरित की साथ ही आदरणीय राम किशोर उपाध्याय जी ने भी अपनी पुस्तक ड्राइंग रुम के कोने, सभी कवियों को अपने हाथों से भेंट किया !

          
प्रस्तुति-लाल बिहारी लाल
सचिव-लाल कला मंच,
फोोन-9868163073











रविवार, 12 अक्तूबर 2014

पर्यावरण का रखे ख्यााल –लाल बिहारी लाल

पर्यावरण का रखे ख्यााल –लाल बिहारी लाल
सोनू गुप्ता


 नई दिल्ली। भोजपुरी की माटी बिहार के सारण(छपरा)जिला में ग्राम एवं पोस्ट भाथा सोनहो में 10 अक्टूबर,1974 को एक साधारण शिक्षक परिवार में लाल बिहारी गुप्ता लाल का जन्म हुआ। श्री लाल की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में हुई। शिक्षा के उपरान्त श्री लाल नौकरी की तलाश में दिल्ली आये और सन् 1995 में भारत सरकार के पर्यावरण एंव वन मंत्रालय में नौकरी लग गई।
 श्री लाल पद्दोन्नति के बाद वर्ष 2007 से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय,नई दिल्ली के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग में कार्यरत हैं।
  श्री लाल को शुरु से ही साहित्य के प्रति गहरी रुचि है। नतीजतन सन 1986 में स्थानीय साप्ताहिक पत्रिका परसा टाइम्स में इनकी पहली कविता महंगाई छपी थी। इसके बाद सारण के लाल,देश के पहरेदार आदी में छपी। फिर इन्होने भोजपुरी में कविता एवं गीत लिखना शुरु किया। इनका पहला एलबम गंगा कैसेट्स में रिकार्ड हुआ पर रिलीज हुआ टी.-सीरीज से सन 1995 में इसके बाद इन्होने एच.एम.बी.,वीनस,रामा,मैक्स,मैक,गंगा,चंदा,,जयंती................आदी कंपनियो के लिए सैकडो गीत लिखा और अपने समय में काफी हिट हुये थे।इन्होने दो एलबम हिंदी में-फंस गया मोरी गेट में तथा चाची की दवा लो लिखा जो काफी सुपर डुपर हिट रहा। भोजपुरी गीतो में असलीलता के बढते प्रभाव के कारण इनका रुझान हिंदी साहित्य में हुआ फिर पर्यावरण के प्रति जागरुक हुए और परिणाम स्वरुप इन्हें मारिशस के उच्चायुकत-श्रीमती यू.सी. द्वारका कैनावेदी  द्वारा एक साहित्यिक मंच पर सन 2004 में राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। फिर 2006 में मरिशस के पर्यावरण एवं वन मंत्री ने भी सम्मानित किया। सन 1996 से अभी तक श्री लाल को लगभग 75 सम्मान विभिन्न सरकारी(भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय,उद्योग मंत्रालय,प्रदूषण निंयंत्रण बोर्ड,उ.प्र.)हिंदी अकादमी,दिल्ली सरकार,सा. अकादमी,हरियाणा सरकार एवं देश के विभिन्न प्रदेशों के अनेक गैर सरकारी संस्थाओ द्वार सम्मानित किया जा चुका है।
श्री लाल के जीवनी एव कविताओं/लेखनी पर जींद,हरियाणा से प्रकाशित मा.पत्रिका रविन्द्र ज्योति 2009 में,दूर्गम खबर 2011 में तथा मासिक मैट्रो टच 2012 में विशेषांक प्रकाशित कर चुकी है। लाल अभी तक 4 कविता संकलन समय के हस्ताक्षर (2006),लेखनी के लाल(2007),माटी के रंग (2008),धऱती कहे पुकार के(2009) तथा वर्ष 2012 में कोलकाता से त्रिविध भाषाओं प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका साहित्य त्रिवेणी का पर्यावरण एवं वन विशेषांक का अतिथि संपादन भी किया है। श्री लाल की हजारों  रचनायें देश के सैकडो पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।

    श्री लाल ,लाल कला संस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच(लाल कला मंच)रजि. के संस्थापक सचिव भी हैं जो दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक तथा साहित्यिक गतिनिधियो को बा-खूबी अंजाम दे  रही है। इस संस्था के तहत नवोदित बच्चों को प्रति वर्ष रंग अबीर उत्सव के मार्फत मंच प्रदान करती है। लाल कला मंच परिवार इनके जन्म दिवस पर इनके विकास एवं उन्नति की कामना करती है।


गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

हिंदी पखवाडा -20014 के दौरान लाल बिहारी लाल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में

हिंदी पखवाडा के दौरान  वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में  निबंध प्रतियोगिता में  भाग लोते हुए लाल बिहारी गुप्ता लाल







हिंदी पखवाडा के दौरान  वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में कविता पाठप्रतियोगिता में  भाग लोते हुए लाल बिहारी गुप्ता लाल

















गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

भारत रत्न- लालबहादुर शास्त्री

भारत रत्न- लालबहादुर शास्त्री

लाल बिहारी लाल,नई दिल्ली
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी।]लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। पिता की असामयिक मृत्यु के बाद इनका लालन- पालन ननिहाल में हुआ। नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही प्रबुद्ध बालक ने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
     
       वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्युपर्यन्त लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957  1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्वचीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।

          ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
*सचिव -लाल कला मंच,नई दिली
E-mail.-lalkalamunch@rediffmail.com
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